कल एक समाचार पढ़ा हजारों साल से जीवन को संजीवनी दे रहा ग्वारपाठा kidney infection के निवारण में सहायक होगा। लाला लाजपतराय मेडिकल कालेज के वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे हैं। फार्मोकलाजी विभाग की एमडी छात्रा डा.शालिनी वीरानी ने चूहों पर प्रयोग किया। एक माह के प्रयोग में उनकी किडनी पूरी तरह ठीक हो गई। इसके लिए चूहों को दो समूहों में बांटा गया। पहले समूह में स्वस्थ चूहें जबकि दूसरे समूह में किडनी रोगी चूहें। स्वस्थ चूहों को लगातार एलोविरा का डोज दिया गया। इसके बाद उनमें किडनी रोग का संक्रमण नहीं लगा। जिन चूहों की किडनी फेल की गई थी उन्हें एक माह में एलोविरा की खुराक ने ठीक कर दिया। यही नहीं एलोविरा से उनके लिवर की क्षमता भी बढ़ी। इन दिनों किडनी रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
एलोपैथी में महंगी और कष्टप्रद डायलेसिस चिकित्सा करानी पड़ती है। अगर एलोविरा का प्रयोग मनुष्यों पर भी कारगर रहा, तो आने वाले समय में किडनी रोग की चिकित्सा सस्ती और सर्व सुलभ हो जाएगी। हमारे प्राचीन आयुर्वेद के ग्रंथों में कुदरती नुस्खों का खजाना भरा पड़ा है। अगर आधुनिक संदर्भ में इन पर नए सिरे शोध किया जाए, तो जटील रोगों से मुक्ति मिल सकती है। चरक संहिता में एलोविरा को औषधि गुणों से लबरेज बताया गया है। आयुर्वेद में इस ग्वारपाठा या घृतकुमारी नाम से जाना जाता है। यह बड़ी आसानी से कहीं भी उगाया जा सकता है। घर पर गमले में लगा सकते हैं।
1.उदररोग, वात व्याधि
2.चेहरे तथा शरीर की त्वचा पर होने वाले रोग जैसे दाग, धब्बे, झाइयों में
3.मधुमेह रोग, हृदयरोग
4.मोटापा, कैंसर रोग
5.स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी विकारों में इससे अचूक इलाज होता है
कैसे खाएं– इसे चाहें तो ऐसे ही छील कर इसका गुदा रोज सुबह खा सकते हैं। या फिर लड्डू बना कर या हलवा बना कर खा सकते हैं। ग्वारपाठे की सब्जी भी बनाते हैं। सूखा कर चूर्ण बना कर भी खाया जाता है। आयुर्वेदिक औषधि भंडारों पर घृतकुमारी आसव मिलता है, उसे पेय के रूप में लिया जा सकता है।