*!! तुलसी अर्क !!*
*गुण व उपयोग :-* यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है ! यह मलेरिया, डेंगू, खांसी, सर्दी-जुकाम आदि विभिन्न जानलेवा बिमारियों से बचाती है ! यह अर्क ब्लड कोलेस्ट्रोल, एसिडिटी, पेचिस, कोलाइटिस, स्नायु दर्द, सर्दी-जुकाम, सिरदर्द, उल्टी-दस्त, कफ, चेहरे की क्रांति में निखार, मुंहासे, सफेद दाग, कुष्ठ रोग, मोटापा कम, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, मलेरिया, खांसी, दाद, खुजली, गठिया, दमा, मरोड़, आंख का दर्द, पथरी, नकसीर, फेफड़ों की सूजन, अल्सर, पायरिया, शुगर, मूत्र संबंधी रोग आदि रोगों में लाभदायक है ! गर्भवती महिलाओं में सावधानी व चिकित्कीय परामर्श जरूरी है !!
*मात्रा व अनुपान :-*
दो-दो बूंद, सुबह-शाम नियमित रूप से इसका सेवन करना चाहिए ! इसको चाय में मिलाकर भी सेवन किया जा सकता है !!
*तुलसी अर्क बनाने की विधि :-*
ताजा तुलसी का पौधा जो कि अच्छा परिपक्व, अधिक पत्तों वाला व सूखा हुआ न हो ! जड़-मूल, पत्ते, फूल सहित पूरा पौधा, को लेकर मिट्टी आदि को ठीक तरह से साफ कर लें ! यदि पौधा रोगी/सूखा/खराब अंश हो तो उसको बाहर निकाल दें !!
इन पौधों के एक इंच के छोटे-छोटे टुकड़े कर लें व इनको थोड़े से पानी में एक दिन के लिए भिगो दें ! ध्यान रखें कि यदि पानी की मात्रा ज्यादा होगी तो अर्क कम गाढ़ा बनेगा और कम असरदार होगा ! अगले दिन आप देखेंगे कि इसमे ऊपरी सतह पर तेल जैसा चमकीला पदार्थ तैरता हुआ नजर आएगा ! इसका मिश्रित तेल युक्त जल ही अर्क है ! इसे ही अलग करना है !!
जलयुक्त कटे हुए तुलसी के टुकड़ों को प्रेसर कुकर में डाल दें ! प्रेसर कुकर की सीटी को हटाकर उसमें लगभग तीन मीटर की एक प्लास्टि की टयूब लगा दें ! इस टयूब पर पर ठण्डे पानी से भिगोया हुआ कपड़ा बांध दें !
प्रेसर कुकर का ढक्कन बन्द कर उसको धीमी आंच पर रख दें ! गीले कपड़े से लपेटी हुई प्लास्टिक की टयूब के दूसरे सिरे को एक खाली बोतल में लगा दें ! खाली बोतल को प्रेसर कुकर से लगभग २-३ फिट नीचे रखें ताकि उसमें कुकर से वाष्पित अर्क आता रहे !!
ध्यान रखें कि गीले कपड़े से पानी बोतल के अन्दर न जाए व खाली बोतल को भी ठण्डे पानी में रखें !!
सारा अर्क निकलने के बाद बोतल को ढक्कन से बन्द कर दें, जिसको बाद में समयानुसार प्रयोग में लाया जा सके !!
*!! दुग्ध अर्क !!*
*गुण व उपयोग :-*
दुग्ध अर्क उदर रोग, शोथ, पांडु, कामला, हलीमक, राजयक्ष्मा, जीर्णज्वर, पाचन संस्थान की दुर्बलता, खाँसी, श्वास, रक्तपित्त, आमदोष, संग्रहणी, अतिसार आदि रोगों में लाभदायक है ! इसके सेवन से भूख खुलकर लगती है ! व यह शक्तिवर्द्धक है !!
*मात्रा व अनुपान :-*
१२५ ग्राम से २५० ग्राम आवश्यकतानुसार !!
*!! रक्तदोषान्तक अर्क !!*
*गुण व उपयोग :-* रक्तदोषान्तक अर्क के सेवन से रक्त दोष, चर्म विकार, खाज-खुजली, फोड़ा-फुंसी, विचर्चिका, दद्रु, कुष्ठ, विसर्प, विस्फोटक, जीर्ण उपदंश जन्य रक्तविकार एवं जीर्ण पूयमेह (सूजाक) जन्य विकार, गठिया, वातरक्त आदि रोगों में अच्छा लाभ मिलता है ! यह रक्त को शुद्ध करता है !!
*मात्रा व अनुपान :-*
२० से ४० ग्राम, दिन में २-३ बार !!
*!! शुण्ठी अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* शुण्ठी अर्क के सेवन से मन्दाग्नि, अरोचक, अजीर्ण, आमदोष, अतिसार, संग्रहणी, आमवात, उदरशूल, आद्यमान, वातव्याधि, शोथ, खाँसी व श्वास आदि रोगों में अच्छा लाभ मिलता है !!
*मात्रा व अनुपान : -*
२० से ४० ग्राम !!
*!! हरा-भरा अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* हरा-भरा अर्क के सेवन से राजयक्ष्मा उर:क्षत, मूत्रदाह, औपसर्गिक पूयमेह (सूजाक) व हृदय की धड़कन आदि में उत्तम लाभ मिलता है !!
*मात्रा व अनुपान : -*
३०से ६० ग्राम !!
*विशेष : -*
हरा-भरा अर्क के सेवन काल में उष्ण व रूक्ष द्रव्यों से प्रहेज करें !!
*!! सौंफ का अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -*
सौंफ के अर्क के सेवन से संग्रहणी, अतिसार, प्रवाहिका, रक्तातिसार, आमदोष, अरूचि, जी मिचलाना, अम्लपित्त आदि रोगों में लाभदायक है !!
*मात्रा व अनुपान : -*
२० से ७० ग्राम, दिन में २-३ बार !!
*!! वायविडंग अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* वायविडंग अर्क कृमि रोग व मेदवृद्धि एवं कफ दोष आदि में लाभकारी है !!
*मात्रा व अनुपान :-*
२० से ५० ग्राम, दिन में दो बार !!
*!! महासुदर्शन अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -*
महासुदर्शन अर्क सभी प्रकार के विषज्वर, कुनीन के सेवन से बढ़ी गर्मी, कम सुनार्इ देना व कानों सांय-सांय की आवाज होना, पांडु, रक्तपित्त व रक्तविकारों में अच्छा लाभ करता है ! इसके सेवन से धातु शुद्ध होती है !!
*मात्रा व अनुपान : -*
२० से ४० ग्राम, दिन में २-३ बार !!
*!! मकोय अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* मकोय अर्क बवासीर, उदर रोग, यकृत विकार, पांडु, कामला, शोथ व ज्वर आदि रोगों में लाभ करता है। यह बलवर्द्धक है !!
*मात्रा व अनुपान : -*
२० से ४० ग्राम, दिन में २-३ बार !!
*!! मेदोहर अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* मेदोहर अर्क के सेवन से मेदवद्धि (मोटापा अधिक बढ़ जाना), मन्द-मन्द ज्वर, हृदय में पीड़ा होना, शोथ, यकृत शूल, उदर शूल, रक्त विकार, थोड़े से ही परिश्रम से थकावट हो जाना, प्रमेह आदि रोगों में मिलता है ! मेदवृद्धि में लक्ष्मीविलास रस नारदीय या चन्द्राप्रभावटी, मेदोहर विडंगादि लौह आदि के साथ इसका सेवन करना विशेष लाभकारी है !!
*मात्रा व अनुपान : -*
२० से ३० ग्राम, दिन में २-३ बार !!
*विशेष : -* यदि मेदोहर अर्क की मात्रा अधिक ली जाएगी या शहद कम मिलाया जाएगा, तो व्याकुलता होने लगती है ! एक-दो दस्त लग जाते हैं, पसीना आ जाता है ! व कुछ मिनटों के लिए कमजोरी आ सकती है !!
*!! महामंजिष्ठादि अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -*
महामंजिष्ठादि अर्क के सेवन से रक्त दोष व त्वचा के विकारों, फोड़ा-फुंसी, खाज-खुजली, कुष्ठ, विसर्प, शीतपित्त, वातरक्त आदि रोगों में लाभ मिलता है ! लंबे समय तक सेवन करने से कुष्ठ रोग जैसी भंयकर बीमारी से भी निजात मिलती है !!
*मात्रा व अनुपान :-* २० से ६० ग्राम, दिन में २ से ३ बार !!
*!! पुदीना अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* पुदीने का अर्क वमन नाशक है ! जी मिचलाना, वमन, अजीर्ण, अफारा, उदरशूल, मन्दाग्नि आदि रोगों में लाभ करता है !!
*मात्रा व अनुपान : -* २५- २५ ग्राम, चार-चार घण्टे के बाद पिलाएं !!
*!! पित्तपापड़ा अर्क !!*
*( शहतरा अर्क )*
*गुण व उपयोग : -* पित्तपापड़ा अर्क रक्त दोष व त्वचा के विकारों के कारण उत्पन्न हुए खाज-खुजली, फोड़ा-फुंसी आदि में लाभ करता है ! यह उत्तम पित्तशामक होने के कारण पित्त ज्वर, दाह, रक्तपित्त, प्यास की अधिकता, शरीर में गर्मी का अधिक बढ़ जाना, पसीना अधिक आना आदि विकारों में गुणकारी है !!
*मात्रा व अनुपान : -* ३० से ६० ग्राम, दिन में तीन से चार बार !!
*!! गुलबनप्सा अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* गुलबनप्सा अर्क प्रतिष्याय, सूखी खाँसी, जीर्ण ज्वर, मन्द-मन्द ज्वर रहना, श्लेष्म सन्निपान, कफ विकार, श्वास रोग आदि में बहुत लाभदायक है ! कोमल प्रकृति के रोगियों के लिए यह विशेष गुणकारी है !!
*मात्रा व अनुपान : -* २० से ३० ग्राम, दिन में दो से तीन बार !!
*!! गावजवान अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* गावजवान अर्क हृदय रोगों व हृदय की कमजोरी को दूर करता है ! मस्तिष्क को बल प्रदान करता है ! कफ दोष को भी नष्ट करता है !!
*मात्रा व अनुपान : -* २० से ३० ग्राम, दिन में दो बार !!
*!! उस्बा अर्क !!*
*गुण व उपयोग : -* उस्बा अर्क रक्तदोश, त्वचा रोग, त्वचा पर काले दाग पड़ना, फोड़ा-फुंसी, जीर्ण उपदंश, खाज-खुजली, सूजाक विश के कारण शरीर पर लाल चकत्ते पड़ना आदि बहुत लाभकारी है !!
*मात्रा व अनुपान : -* २० से ४० ग्राम, दिन में दो बार !!