1 : मुक्तादि वटी :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪ मोतीपिष्टी २ तोले, सुवर्ण का वर्क, चॉदी का वर्क, कमलकेशर, गुलाब केशर ( पुष्पों के भीतर का जीरा ) कहरुआ, जहर मोहरा खताई, संगेयशद, और गोरोचन, ये आठ औषधियॉ १/१ तोला, नागकेशर २ तोले, केशर ६ मासे, कपूर ३ मासे, गोदन्ती भस्म १२ तोले लेवें !! वर्क के अतिरिक्त सारी औषधियों को मिलाकर १/१ वर्क डालकर खरल करें ! तत्पश्चात गुलाब के अर्क में आठ दिन खरल करके १/१ रत्ती की गोलियॉ बना रख लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪१ से ४ गोली तक माता के दूध या गौदुग्ध में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करायें !!
उपयोग :- यह वटी बालकों के बालशोष को दूर करती है ! जीर्ण ज्वर, बालक का कृष हो जाना, पाण्डुरोग, अपचन, अफारा, वस्ति या दस्त होकर दूध निकल जाना, खॉसी, स्फूर्ति का अभाव, मुखपाक, पेसाब का गाढ़ा होना, आदि विकार इस वटी के सेवन से दूर होकर बालक निरोगी व सबल बन जाता है !!
वक्तव्य :- इस वटी के साथ अरविंदासव देते रहने से लाभ जल्दी पहुंचता है ! यह इस वटी को बनाते समय क्षुद्र शंखभस्म भी मिला ली जाय तो वटी अधिक गुंणकारी हो जाती है !!
2 : मालती चूर्ण :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪ सबसे पहले जशद भस्म १ सेर लेकर एक हांडी में डाल उसमें १ सेर नींबू का रस डाल कर उबालें ! रस जल जाने पर हांडी को उतार लें व भस्म को धुल लें ! यह शुद्ध खर्पर हो गई ! अब यह शुद्ध खर्पर १ सेर, बड़ी हरड़ १ सेर, और छिलके सहित छोटी इलायची आधा सेर, तीनो को मिलाकर कूटपीस कर कपड़छान चूर्ण कर लें तथा यह चूर्ण सुरक्षित कर बोतल में भर कर रख लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪इस चूर्ण की १ से ३ रत्ती की मात्रा दिन में दो बार देना है !!
उपयोग :– यह चूर्ण बालकों के बालशोष, जीर्ण ज्वर, जीर्ण अतिसार, वमन, मुखपाक, गुदापाक, अस्थिमार्दव, निर्बलता, अग्निमान्द्य, आदि रोग तथा प्रसूता के जीर्णज्वर को दूर करता है ! रस धातु और रसायनियों को पुष्ट बनाता है !!
इस चूर्ण के प्रयोग से बालशोष रोग थोड़े ही दिनो में दूर हो जाता है ! यदि बालक को पतले दस्त लगते हों तो पहले एक सप्ताह इस चूर्ण को चावल के धोवन के साथ, फिर दूसरे सप्ताह मट्ठे के निथरे हुए जल के साथ तथा तीसरे सप्ताह में शहद के साथ सेवन कराना चाहिए ! तीन सप्ताह के पश्चात भी जब तक रोग निवृत्त न हो जाए तब तक शहद या माता के दूध या जल से दवा देते रहें !!
यदि बालशोष के साथ ज्वर रहता हो तो इस चूर्ण को शहद या जल के साथ एक माह तक देते रहने से बालक रोगमुक्त हो सबल व स्वस्थ हो जाता है ! अस्थि मार्दव रोग में इस चूर्ण को प्रवालपिष्टी और मण्डूर भष्म मिलाकर सेवन कराने से निश्चय ही रोग से मुक्ति मिल जाती है !!
जो स्त्री प्रसव काल में जीर्ण ज्वर से कृश हो गई हो तो उसे दिन में दो बार मालती चूर्ण ३ से ६ रत्ती तथा गोदन्ती भस्म ३ से ६ रत्ती मिलाकर देते रहने से वह भी पुष्ट हो जाती है !!
3 : बाल वटी :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪ जीरा, छाया में सुखाया हुआ पुदीना, हरड़, वायविडंङ्ग, लौंग, अतीस, सौंफ, जायफल, भांग, रूमीमस्तगी, कछुवे के पीठ की भस्म, कोयल( गोकर्णी) के बीज, जहरमोहरा पिष्टी, और केशर, ये १४ औषधियॉ समभाग लेकर कूटपीस कर कपड़छान चूर्ण कर घीक्वांर के रस में १२ घण्टे खरल कर १/१ रत्ती की गोलियॉ बनाकर रख लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪इस वटी की १ से २ गोली की मात्रा प्रात: व सायं दूध में मिलाकर पिलायें !!
उपयोग :- इस वटी का सेवन कराने से बालकों को दूध का पाचन अच्छे से होता है ! शान्त निद्रा आती है ! रक्त आदि धातुयें बलवान बनती हैं ! और बालक का स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है ! जुकाम, अतिसार, वान्ति, काश आदि का विकार हुआ हो तो दूर हो जाता है !!
4 : सुधाषट्क योग :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪प्रवालभष्म १ तोले, शुक्तिभस्म २ तोले, शंखभस्म ३ तोले, चराटिकाभस्म ४ तोले, कछुवे के पीठ की भस्म ५ तोले, और गोदन्ती भस्म ६ तोले, सबको मिलाकर नींबू के रस में तीन दिन तक खरल कर १/१ रत्ती की गोलियॉ बना लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪इस वटी की १ से ४ गोली तक दूध के साथ दिन में तीन बार सेवन करायें !!
उपयोग :– यह सुधाकल्प बालशोष ( सूखारोग ) और अस्थिमार्दव पर अच्छा काम करती है ! सगर्भावस्था में माता निर्बल होने पर या बाल्यावस्था में माता रुग्ण हो जाने या अन्य किसी कारण से बालक का योग्य पोषण नही होता ! माता की अस्थियॉ निर्बल होने पर दुग्ध ( स्तन ) में अस्थि पोषक तत्व कम होता है ! इस कारण से बालक को अस्थिमार्दव ( Rickets ) रोग हो जाता है ! इस रोग में विशेषत: पैर की हड्डी मुड़ जाती हैं ! छाती और हांथ की हड्डियॉ भी अति कमजोर हो जाती है ! नितम्ब पर सिकुड़न पड़ जाती है ! किसी किसी बच्चे को ज्वर भी रहता है ! बार बार थोड़ा थोड़ा दस्त होता रहता है ! या कब्ज रहती है ! इस रोग में हड्डियों में सुधा ( चूना ) का परिमाण कम हो जाता है ! इन सभी कारणों में सुधाकल्प का सेवन कराने पर हड्डी सबल बन जाती है ! ज्वर का शमन हो जाता है ! तथा पाचन क्रिया सुधर जाती है ! तथा शरीर बलवान और निरोगी बन जाता है !!
5 : बालशोष (सूखारोग) हर वटी १ लघुवसन्त :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪कश्तूरी १ मासे, केशर २ मासे, साठी चावल १ तोला, और गधी का दूध ५ तोले लेकर सबको मिलाकर खरल करें ! लगभग तीन दिन खरल करने से दूध का शोषण हो जायेगा ! ( दूध आधा आधा दो बार में डाले ) फिर रत्ती के चौथाई हिस्से मात्रा की गोलियॉ बनाकर रख लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
इस वटी की १/१ गोली की मात्रा सुबह साम दूध या शहद के साथ दें ! यदि गधी के दूध का प्रबंध हो तो यह वटी अधिक व जल्द कारगर होगी !!
उपयोग :- यह बालशोष हर वटी, बालशोष ( marasmus ) को दूर करती है ! इस वटी का उपयोग उत्तर प्रदेश में कई वर्षों से होता आ रहा है ! अस्थि विकृति हो तो प्रवालपिष्टी और वंशलोचन मिला लेना अति लाभदायक है ! उदर बहुत बढ़ गया हो तो अभ्रक भस्म रत्ती का सोलवॉ भाग, मिलाने पर विशेष लाभ करती है !!
6 बालशोष हर (सूखारोग) वटी २ :-
▪प्रवालपिष्टी और लघुवसन्त को समभाग मिला गूलर के दूध में १२ घण्टे तक खरल कर आधी आधी रत्ती की गोलियॉ बना कर रख लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪ इस वटी की १/१ गोली दिन में तीन बार दूध या जल के साथ देना चाहिए !!
उपयोग :- यह गुटिका बालकों के लिये महौषधि है ! यह वटी के सेवन से बालशोष, अस्थिमार्दव, जीर्ण ज्वर, काश, अतिसार, आदि रोग दूर होते हैं ! यह बड़े मनुस्यों की निर्बलता को दूर करने में भी असरदार है ! बड़े लोगो को ४/४ रत्ती की मात्रा दिन में दो बार देना चाहिए !!
7 : हिंगुलादि गुटका ( डब्बारोग ) :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪शुद्ध शिंगरफ, जायफल, जावित्री, गोरोचन, ये चारो १/१ तोला, व शुद्ध जमालगोटा ४ तोले लेकर सबको नींबू के रस के साथ तीन दिन तक खरल कर चौथाई रत्ती ( एक रत्ती का चौथा भाग ) की गोलियॉ बनाकर रख लें !!
-: मात्रा व सेवन विधि :-
▪ इस गुटिका की १ गोली जल के साथ दें ! आवस्यकता पड़ने पर तीन घण्टे बाद दूसरी गोली दे सकतें हैं !!
उपयोग :- यह गुटिका एक या दो दस्त लाकर बालकों के डब्बा रोग को दूर करती है ! एवं शोष व जलोदर हो गया हो तो उसको भी दूर कर देती है !!
वक्तव्य :– यदि बालक को डब्बे की बीमारी में पहले से ही पतले दस्त हो रहे हों या कब्ज न हो तो यह वटी नही देना चाहिए !!
8 : बालयकृदरि लौह :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪अभ्रकभस्म, लौहभस्म, पारदभस्म ( रससिंदूर ) जम्भीरी नींबू के बीज, अतीस, सरपोंखा की जड़, रक्तचन्दन, और पाषाणभेद, इन सभी आठ औषधियों को समभाग मिलाकर गिलोय के स्वरस के साथ एक दिन खरल कर २/२ चावल जितने वजन की गोलियॉ बना कर रख लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪इस वटी की एक से दो गोली रोगानुसार अनुपान के साथ दिन में दो बार देना है !!
उपयोग :- यह रासायन बालकों के घोर यकृत वृद्धि, प्लीहावृद्धि, ज्वर, शोथ, विवंध, पाण्डुरोग, काश, मुखरोग और उदर रोगों को ऐसे दूर करती है ! जैसे सूरज अन्धकार को दूर करता है !!
9 : अम्बुशोषण चूर्ण :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪रससिंदूर, यवक्षार, रेवतचीनी, भारङ्गी, तेजपात, दालचीनी, हरड़, इन्द्रायण मूल और छोटी इलायची के दाने ! इन सबको समभाग लेकर खरल कर चूर्ण सुरक्षित कर लें !!
नोट :– इस रसायन के साथ अभ्रकभस्म और ताम्रभस्म मिला लेने पर अधिक गुंणकारी हो जाती है !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪ इस चूर्ण की १ से २ रत्ती की मात्रा दूध के साथ दिन में एक या दो बार दें सकतें हैं !!
उपयोग :- यह रसायन मस्तिष्क में संग्रहीत जल के शोषणार्थ प्रयोग होता है ! कुछ दिनो तक शान्ति पूर्वक प्रयोग कराने पर रोग से छुटकारा मिल जाता है !!
बालक को अधिक कब्ज रहती हो और इस चूर्ण के सेवन कराने पर भी उदरशुद्धि न हो तो साथ में पीतमूल्यादि कषाय का सेवन कराते रहना चाहिए !!
10 : पीतमूल्यादि कषाय :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪रेवन्दचीनी, शठी, कालीनिसोथ, सफेद निशोथ, ऑवला, हरड़, काली अनन्तमूल, धनियॉ, मुलहठी, कुटकी, नागरमोथा, हल्दी, दारुहल्दी, तेजपात, दालचीनी, और छोटी इलायची के दाने, इन सोलह औषधियों को समभाग लेकर मिला लें व जौकुट्ट चूर्ण कर रख लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪ इस चूर्ण को ३/३ मासे लेकर क्वाथ कर आधी रत्ती यवक्षार मिलाकर दिन में एक या दो बार पिलाये !!
उपयोग :– यह कषाय मस्तिष्क में बढ़े हुए जल वृद्धि को कम करता है ! अनेक बालकों को दांत आने के समय या पेट में कीड़ा होने पर वायु प्रकोप से मस्तिष्क में जल भरने लगता है ! तब मस्तिष्क का बड़ा दिखना, जिह्वा मल से आवृत्त रहना, अति निद्रा आना, शरीर दुर्बल हो जाना, मल अति गाढ़ा हो जाना, श्वांस में दुर्गंध आना, फिर शिर में दर्द, मल-मूत्र में कालापन, निस्तेज मुखमण्डल, नींद में दांत किटकिटाना, ऑखें लाल होना, औंठ पर खुजली चलना, नासिका में आक्षेप होना, नेत्र की पुतली विषम भासना, आदि लक्षण उपस्थित होते हैं ! इस रोग पर मल-मूत्र का विरेचन करने वाली औषधियॉ दी जाती हैं ! ये गुंण इस कषाय में होने से इसका सेवन कराने पर रक्त में से जल बाहर निकल जाता है ! व कीटाणु नष्ट हो जाते हैं ! फिर मस्तिष्क या देह के अन्य भाग में जहां जल संग्रहीत हो वहां से रक्त के भीतर आकर्षित हो जाने से शीर्षाम्बु रोग का शमन हो जाता है ! इस रोग में औषधि काफी दिनो तक देते रहना चाहिए ! बालक को गरम वस्त्र से लपेट कर रखना चाहिए ! बालक माता के दूध पर हो तो माता को भी पत्थ्य पालन करना चाहिए ! सुबह यह कषाय और शाम को अम्बुशोषण चूर्ण सेवन कराते रहना विशेष लाभदायक होता है !!
11 : वचा हरिद्रादि कषाय :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪वच, नागरमोथा, देवदारु, सोंठ, अतीस, हल्दी, दारुहल्दी, मुलहठी, पृश्नपर्णी, और इन्द्रजौ, इन सभी औषधियों को समभाग लेकर जौकुट चूर्ण कर रख लें !!
मात्रा व सेवन विधि :-
▪ इस चूर्ण के ३/३ मासे का क्वाथ बालक के लिए तथा माता के लिये २/२ तोले का क्वाथ दिन में तीन बार सेवन करें !!
उपयोग :- यह कषाय बालक को देने से आमातिसार का शमन होता है ! तथा कफ मेद का शोषण होता है ! साथ में बच्चे की माता को देने से स्तन ( दूध ) का शोधन होता है !!
12 : कासान्तक कषाय :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪ बनफसा के फूल, गुलाब के फूल, उन्नाव, छोटी हरड़, कालीमुनक्का, अमलतास का गूदा, और मुलहठी, इन सबको मिलाकर जौकुट चूर्ण करके सुरक्षित कर लें !!
उपयोग :- ६ मासे चूर्ण को ४ तोले जल में उबालें जब आधा जल शेष बचे तब छान ले उसमे से आधा आधा तोला कषाय दिन में चार बार देने से बालकों की काली खॉसी का शमन हो जाता है ! यदि इस कषाय के साथ कामदुधा रस १/१ रत्ती दें तो बहुत अच्छा काम करती है !!
13 : बालशोषहर तेल :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪केचुआ गीले २० तोले, को ६० तोले, तिल के तेल में मिलाकर अतिमन्द अग्नि पर पकावें ! तेल पक जाने पर उतार कर तुरन्त छान कर ऱख लें !!
उपयोग :- यह तेल बालशोष ( सूखारोग ) पर अति लाभदायक है ! प्रतिदिन रात के समय पूरे सरीर पर इस तेल की मालिस करते रहने और बालशोष हर गुटिका का सेवन कराते रहने से २१ दिन मे सूखारोग नि:संदेह दूर हो जाता है !!
14 : ज्वरान्तक चूर्ण :-
सामग्री :- कड़वी नाईं के मूल १० तोले और कालीमिर्च ढाई तोले को कूटपीस कर चूर्ण कर रख लें !!
उपयोग :- यह ज्वरान्तक चूर्ण बालकों के ज्वर के लिये अति लाभकारी है ! इस चूर्ण को १ से २ रत्ती तक दिन में तीन बार माता के दूध या जल से देना चाहिए ! यह चूर्ण , मलावरोध, अपचन और कफप्रकोप को भी दूर करता है ! पतले दस्त हो रहें हों तो इसमें फिटकरी का फूला १ रत्ती मिला देना चाहिए ! यदि ज्वर अधिक परिमाण मे रहता हो तो गोदन्ती भस्म १ रत्ती मिला लेना चाहिए !!
यदि बड़े मनुस्यों को पित्तज्वर हो, पतले पतले दस्त, ब्याकुलता, अधिक स्वेद, सिरदर्द, और उग्रता आदि लक्षण हो तो उनको भी यह चूर्ण डेढ़ से दो मासे और फिटकरी का फूला ३ से ४ रत्ती मिलाकर दिया जाता है !!
15 : वचा हरिद्रादि कषाय :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪वच, नागरमोथा, देवदारु, अतीस, सोंठ, हल्दी, दारुहल्दी, मुलहठी, पृष्ठपर्णी, और इन्द्रजौ, इन सभी दस औषधियों को समभाग मिलाकर जौकुट चूर्ण करें ! इस चूर्ण के ३/३ मासे का क्वाथ बालक के लिये तथा २/२ तोले का क्वाथ माता के लिए दिन में तीन बार सेवन कराएं !!
उपयोग :- यह कषाय दीपन, पाचन, वातहर, कफघ्न और ग्राही है ! यह बालको के अतिसार रोग में प्रयुक्त होता है ! कफ वृद्धि या जुकाम हो तो वह भी दूर हो जाते हैं ! यह कषाय शिशु की माता को देने पर दूध की शुद्धि हो जाती है !!
16 : कुक्कुर कास हर मिश्रण :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪प्रवालपिष्टी और श्रंगभष्म १०/१० तोले, और गोदन्ती भष्म, वंशलोचन, गिलोयसत्व ५/५ तोले, तथा छोटी इलायची के दाने ढाई तोले ! सबसे पहले वंशलोचन तथा छोटी इलायची के दानों को खरल कर एक जीव कर लें ! फिर शेष औषधियॉ मिलाकर खरल कर लें ! तथा सुरक्षित कर लें !!
उपयोग :- इस मिश्रण की १ से २ रत्ती की मात्रा दिन में तीन से चार बार देने से काली खांसी जाती रहती है ! यह मिश्रण स्वरयन्त्र और स्वासप्रणालिका की उग्रता का दमन कर कास को दूर कर देता है !!
काली खांसी पर यह चूर्ण २/३ दिन सेवन करने में अपना असर दिखा देता है ! और पन्द्रह दिन सेवनोपरान्त रोग को विलकुल दूर कर देता है !!
17 : बालरक्षक विन्दु :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪केशर, जायफल, जावित्री, छोटी इलायची के दाने, लौंग, पीपल, अतीस, काकड़ासिंगी, नागरमोथा, सोया, बच और बायविडंङ्ग, यह बारह औषधियॉ १/१ तोला, कश्तूरी ३ मासे और रेक्टीफाइड स्परिट ४० तोले लेवें ! सबसे पहले काष्ठाधि औषधियों को जौकुट चूर्ण कर लें ! फिर यह जौकुट चूर्ण, कश्तूरी, और केशर को स्परिट की बोतल मे डालकर एक सप्ताह के लिए रख दें ! दिन में रोज २/३ बार बोतल को हिला दिया करें ! तथा आठवें दिन फिल्टर पेपर से छान लें ! यदि स्परिट कम हुआ हो तो और स्परिच मिलाकर ४० तोले पूरी कर लें ! आपका बालरक्षक विन्दु तैयार है !!
उपयोग :- इस विन्दु की मात्रा २ से ५ बूंद माता के दूध या गौदुग्ध या जल के साथ दिन में तीन बार दें ! यह विन्दु बालको के लिए अमृत समान गुणकारी है ! बच्चों के जुकाम, हरे पीले दस्त, दूध फेंकना, वान्ति, वाताक्षेप, उदरशूल, पार्श्वशूल, कास, श्वांस आदि को नितांत दूर करता है !!
18 : श्वांसान्तक योग :-
योग :- मोर के अण्डों के छिलके की भष्म २ से ४ चावल तक माता के दूध या शहद के साथ देने से श्वांस प्रकोप और डब्बा रोग में तत्काल लाभ देती है ! आवस्यकता पड़ने पर ३ घण्टे बाद दूसरी मात्रा दे सकतें है !!
19 : अतिसार हर योग :-
योग :- मकई के डोडिंयों ( दाने निकलने के बाद जो सफेद रंग का भाग बचता है ! ) को जलाकर कोयला कर पीस कर रख लें ! इसमें से २ से ४ रत्ती मात्रा मट्ठे के साथ पिलाने से दांत आने के समय जो हरे पीले दस्त होते हैं ! जिसमे दही के कण जैसे कण मालुम पड़ते है ! वह तुरन्त बन्द हो जाते हैं ! यह औषधि बड़े लोगों के पेचिस पर भी लाभ पहुंचाती है ! और बच्चों की कुकरखांसी को भी दूर करती है !!
20 : धनुर्वातहर योग :-
योग :- सुहागे का फूला की २/२ रत्ती की मात्रा, माता के दूध या शहद के साथ १/१ घण्टे के अन्तर से देते रहने से २ या तीन घण्टे के भीतर बालक के धनुर्वात का दौरा समाप्त हो जाता है ! धनुर्वात के समय हांथ की मुट्ठियॉ बन्द हो जाती हैं ! हांथ पैर सिकुड़ते हैं ! ऑखों की पुतली ऊपर चढ़ जाती है ! कभी दॉत भिंच जाते हैं ! मुंह में झाग आ जाते हैं ! एवं कभी कभी मूत्रावरोध आदि लक्षण उपस्थित हो जाते हैं ! यह आक्षेप बार बार आता रहता है ! इन सभी लक्षणों में सुहागे का फूला देने से लाभ होता है ! और बालक प्रसन्न रहता है !!
21 : जन्मघूटी :-
आवस्यक औषधियॉ :-
▪सौंफ, सौंफ की जड़, वायविडंङ्ग, अमलतास का गूदा, सनाय, छोटी हरड़, बड़ी हरड़, बच, अंजीर, अजवायन, गुलाब के फूल, पलाश के बीज, मुनक्का, उन्नाब की त्वचा, पुराना गुड़ और सुहागे का फूला, यह उपरोक्त १६ औषधियॉ ३ से ४ मासे और नाम मात्र का काला नमक, ( यह एक खुराक की मात्रा है ) !!
वक्तव्य :– अमलतास का गूदा, अंजीर, उन्नाब, गुड़ और मुनक्का के अतिरिक्त बांकी की ११ औषधियों को पहले से जौकुट्ट चूर्ण करके मिलाकर रख सकते है ! तथा उक्त ५ औषधियों को आवस्यकता पड़ने पर मिलायें !!
उपयोग :- यह जन्मघूँटी बालरोग की उत्तम औषधि है ! इस घूँटी का प्रयोग राजस्थान में अधिक होता है ! बच्चों के ज्वर, अपचन, मलावरोध, कफ प्रकोप, खॉसी, जुकाम, आदि सब पर सफलता पूर्वक प्रयुक्त होता है !!
Terms and Conditions
We have assumed that you have consulted a physician before purchasing this medicine and are not self-medicating.