शीशम का परिचय –
शीशम की लकड़ी फर्नीचर और मकानों में इस्तेमाल की जाती है। सारे भारत में शीशम के लगाये हुये अथवा स्वयंजात पेड़ मिलते हैं। इस पेड़ की लकड़ी और बीजों से एक तेल मिलता है जो औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है।
शीशम के विभिन्न भाषाओं मे नाम :
संस्कृत में भस्मगर्भा, शिंशपा, पिच्छिला, कृश्णसारा
हिंदी में शीशो, शीशम
गुजराती में सीसम
मराठी में शिशव
बंगाली में शिशुगाध, शिशू
पंजाबी में शरई, सीसम
तैलगु में शिशुपा, इरूबुदु
कन्नड़ में बिरिडि
कुलनाम फेबासीस।
स्वरूप :
शीशम के पेड़ 100 फुट तक ऊंचे होते हैं। इसकी छाल मोटी, भूरे रंग की तथा लम्बाई के रूख में कुछ विदीर्ण होती है। शीशम की नई टहनियां कोमल एवं अवनत होती है। शीशम के पत्ते एकान्तर, पत्तों की संख्या में 3 से 5 एकान्तर, 1 से 3 इंच लम्बे, रूपरेखा में चौडे़ लट्वाकर होते हैं। शीशम के फूल पीताभ-सफेद, फली लम्बी, चपटी तथा 2 से 4 बीज युक्त होती है। शीशम का सारकाष्ठ पीताभ भूरे रंग का होता है। इसकी एक दूसरी प्रजाति का सारकाष्ठ कृष्णाभ भूरे रंग की होती है।
शीशम के रासायनिक संघटन :
शीशम के तने में तेल पाया जाता है और फलियों में टैनिन और बीजों में भी एक स्थिर तेल पाया जाता है।
शीशम के गुण :
शीशम, कड़वा, तीखा, सूजन, वीर्य में गर्मी पैदा करने वाला, गर्भपात कराने वाला, कोढ़, सफेद दाग, उल्टी, पेट के कीड़े को खत्म करने वाला, बस्ति रोग, फोड़े-फुन्सियों, खून की गंदगी को दूर करने वाला तथा कफ को नष्ट करने वाला है। शीशम कडवा, गर्म, बस्ति रोग को नष्ट करने वाला, हिचकी, शोथ (सूजन) तथा विसर्प को नष्ट करने वाला है। शीशम सार स्नेहन, तीखा, कड़वा, कषैला, दुष्ट व्रणों का शोधन करने वाला, पेट के कीड़े, बलगम, कुष्ठ रोग को खत्म करने वाला होता है। शीशम, अर्जुन, ताड़, चंदन, सारादिगण, कुष्ठ रोग को नष्ट करता है, प्रमेह और पीलिया रोग को खत्म करता है, कफ (बलगम) और मेद का शोधक है। शीशम, पलाश, त्रिफला, चित्रक यह सब मेदानाशक तथा शुक्र दोष को नष्ट करने वाला है, बवासीर, प्रमेह, पीलिया रोगनाशक है एवं शर्करा को दूर करने वाला है।
विभिन्न रोगों का शीशम से उपचार :
1. मूत्रकृच्छ
2. पूयमेह
3. विसूचिका
4. आंखों का रोग
5. स्तनों की सूजन
6. उदर दाह
7. बुखार