परिचय :
एरंड (arandi) का पौधा प्राय: सारे भारत में पाया जाता है। एरंड की खेती भी की जाती है और इसे खेतों के किनारे-किनारे लगाया जाता है। ऊंचाई में यह 2.4 से 4.5 मीटर होता है। एरंड का तना हरा और चिकना तथा छोटी-छोटी शाखाओं से युक्त होता है। एरंड के पत्ते हरे, खंडित, अंगुलियों के समान 5 से 11 खंडों में विभाजित होते हैं। इसके फूल लाल व बैंगनी रंग के 30 से 60 सेमी. लंबे पुष्पदंड पर लगते हैं। फल बैंगनी और लाल मिश्रित रंग के गुच्छे के रूप में लगते हैं। प्रत्येक फल में 3 बीज होते हैं, जो कड़े आवरण से ढके होते हैं। एरंड के पौधे के तने, पत्तों और टहनियों के ऊपर धूल जैसा आवरण रहता है, जो हाथ लगाने पर चिपक जाता है। ये दो प्रकार का होते हैं लाल रंग के तने और पत्ते वाले एरंड को लाल और सफेद रंग के होने पर सफेद एरंड कहते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत – एरंड, गन्धर्वहस्त, वर्धमान, व्याघ्रपुच्छ, उत्तानपत्रक
हिंदी.- अंडी, अरण्ड, एरंड
मराठी- एरंडी
गुजराती- एरंडो दिवेलेगों
बंगाली -भेरेंडा, शादारेंडी
मलयालम- अमन वक्कु
फारसी – वेद अंजीर
अरबी -खिर्वअ
अंग्रेजी- कैस्टर प्लांट
लैटिन -रिसिनस कोम्युनिट्स
स्वाद : एरंड खाने में तीखा, बेस्वाद होता है।
स्वरूप : एरंड दो प्रकार का होता है पहला सफेद और दूसरा लाल। इसकी दो जातियां और भी होती हैं। एक मल एरंड और दूसरी वर्षा एरंड। वर्षा एरंड, बरसात के सीजन में उगता है। मल एरंड 15 वर्ष तक रह सकता है। वर्षा एरंड के बीज छोटे होते हैं, परन्तु उनमें मल एरंड से अधिक तेल निकलता है। एरंड का तेल पेट साफ करने वाला होता है, परन्तु अधिक तीव्र न होने के कारण बालकों को देने से कोई हानि नहीं होती है।
पेड़ : एरंड का पेड़ 2.4 से 4.5 मीटर, पतला, लम्बा और चिकना होता है।
फूल : इसका फूल एक लिंगी, लाल बैंगनी रंग के होते हैं।
फल : एरंड के फल के ऊपर हरे रंग का आवरण होता है। प्रत्येक फल में तीन बीज होते हैं।
बीज : इसके बीज सफेद चिकने होते हैं।
स्वभाव : एरंड गर्म प्रकृति का होता है।
हानिकारक : एरंड आमाशय को शिथिल करता है, गर्मी उत्पन्न करता है और उल्टी लाता है। इसके सेवन से जी घबराने लगता है। लाल एरंड के 20 बीजों की गिरी नशा पैदा करती है और ज्यादा खाने से बहुत उल्टी होता है एवं घबराहट या बेहोशी तक भी हो सकती है। यह आमाशय के लिए अहितकर होता है।
तुलना : इसकी तुलना जमालघोटा से की जा सकती है।
दोषों को दूर करने वाला : कतीरा और मस्तगी एरंड के गुणों को सुरक्षित रखकर इसके दोषों को दूर करता है।
नोट : लाल एरंड का तेल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ लेने से योनिदर्द, वायुगोला, वातरक्त, हृदय रोग, जीर्णज्वर (पुराना बुखार), कमर के दर्द, पीठ और कब्ज के दर्द को मिटाता है। यह दिमाग, रुचि, आरोग्यता, स्मृति (याददास्त), बल और आयु को बढ़ाता है और हृदय को बलवान करता है।
गुण : एरंड पुराने मल को निकालकर पेट को हल्का करती है। यह ठंडी प्रकृति वालों के लिए अच्छा है, अर्द्धांग वात, गृध्रसी झानक बाई (साइटिका के कारण उत्पन्न बाय का दर्द), जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) तथा समस्त वायुरोगों की नाशक है इसके पत्ते, जड़, बीज और तेल सभी औषधि के रूप में इस्तेमाल किए जाते है। यहां तक कि ज्योतिषी और तांत्रिक भी ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए एरंड का प्रयोग करते हैं।
सफेद एरंड : सफेद एरंड, बुखार, कफ, पेट दर्द, सूजन, बदन दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, मोटापा, प्रमेह और अंडवृद्धि का नाश करता है।
लाल एरंड : पेट के कीड़े, बवासीर, रक्तदोष (रक्तविकार), भूख कम लगना, और पीलिया रोग का नाश करता है। इसके अन्य गुण सफेद एरंड के जैसे हैं।
एरंड के पत्ते : एरंड के पत्ते वात पित्त को बढ़ाते हैं और मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कठिनाई होना), वायु, कफ और कीड़ों का नाश करते हैं।
एरंड के अंकुर : एरंड के अंकुर फोड़े, पेट के दर्द, खांसी, पेट के कीड़े आदि रोगों का नाश करते हैं।
एरंड के फूल : एरंड के फूल ठंड से उत्पन्न रोग जैसे खांसी, जुकाम और बलगम तथा पेट दर्द संबधी बीमारी का नाश करता है।
एरंड के बीजों का गूदा : एरंड के बीजों का गूदा बदन दर्द, पेट दर्द, फोड़े-फुंसी, भूख कम लगना तथा यकृत सम्बंधी बीमारी का नाश करता है।
एरंड का तेल : पेट की बीमारी, फोड़े-फुन्सी, सर्दी से होने वाले रोग, सूजन, कमर, पीठ, पेट और गुदा के दर्द का नाश करता है।
हानिकारक प्रभाव : राइसिन नामक विषैला तत्त्व होने के कारण एरंड के 40-50 दाने खाने से या 10 ग्राम बीजों के छिलकों का चूर्ण खाने से उल्टी होकर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।
मात्रा : बीज 2 से 6 दाने। तेल 5 से 15 मिलीलीटर। पत्तों का चूर्ण 3 से 4 ग्राम। जड़ की पिसी लुगदी 10 से 20 ग्राम । जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम।
विभिन्न रोगों में उपयोगी :
1. चर्म (त्वचा) के रोग :
- एरंण्ड की जड़ 20 ग्राम को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इसे पिलाने से चर्म रोगों में लाभ होता है।
- एरंड के तेल की मालिश करते रहने से शरीर के किसी भी अंग की त्वचा फटने का कष्ट दूर होता है।
2. सिर पर बाल उगाने के लिए : ऐसे शिशु जिनके सिर पर बाल नहीं उगते हो या बहुत कम हो या ऐसे पुरुष-स्त्री जिनकी पलकों व भौंहों पर बहुत कम बाल हों तो उन्हें एरंड के तेल की मालिश नियमित रूप से सोते समय करना चाहिए। इससे कुछ ही हफ्तों में सुंदर, घने, लंबे, काले बाल पैदा हो जाएंगे।
3. सिर दर्द : एरंड के तेल की मालिश सिर में करने से सिर दर्द की पीड़ा दूर होती है। एरंड की जड़ को पानी में पीसकर माथे पर लगाने से भी सिर दर्द में राहत मिलती है।
4. जलने पर : एरंड का तेल थोड़े-से चूने में फेंटकर आग से जले घावों पर लगाने से वे शीघ्र भर जाते हैं। एरंड के पत्तों के रस में बराबर की मात्रा में सरसों का तेल फेंटकर लगाने से भी यही लाभ मिलता है।
5. पायरिया : एरंड के तेल में कपूर का चूर्ण मिलाकर दिन में 2 बार नियमित रूप से मसूढ़ों की मालिश करते रहने से पायरिया रोग में आराम मिलता है।
6. शिश्न (लिंग) की शक्ति बढ़ाने के लिए : मीठे तेल में एरंड के पीसे बीजों का चूर्ण औटाकर शिश्न (लिंग) पर नियमित रूप से मालिश करते रहने से उसकी शक्ति बढ़ती है।
7. मोटापा दूर करना :
- एरंड की जड़ का काढ़ा छानकर एक-एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार सेवन करें।
- एरंड के पत्ते, लाल चंदन, सहजन के पत्ते, निर्गुण्डी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, बाद में 2 कलियां लहसुन की डालकर पकाकर काढ़ा बनाकर रखा रहने दें इसमें से जो भाप निकले उसकी उस भाप से गला सेंकने और काढ़े से कुल्ला करना चाहिए।
- एरंड के पत्तों का खार (क्षार) को हींग डालकर पीये और ऊपर से भात (चावल) खायें। इससे लाभ हो जाता है।
- अरण्ड के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से मोटापा दूर हो जाता है।
8. स्तनों में दूध वृद्धि हेतु :
- एरंड के पत्तों का रस दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार कुछ दिनों तक नियमित पिलाएं। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
- अरण्ड (एरंड) पाक को 10 से लेकर 20 ग्राम की मात्रा में गुनगुने दूध के साथ प्रतिदिन सुबह और शाम को पिलाने से प्रसूता यानी बच्चे को जन्म देने वाली माता के स्तनों में दूध में वृद्धि होती है।
- मां के स्तनों पर एरंड के तेल की मालिश दिन में 2-3 बार करने से स्तनों में पर्याप्त मात्रा में दूध की वृद्धि होती है।
9. बालकों के पेट के कृमि (कीड़े) :
- एरंड का तेल गर्म पानी के साथ देना चाहिए अथवा एरंड का रस शहद में मिलाकर बच्चों को पिलाना चाहिए। इससे बच्चों के पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
- एरंड के पत्तों का रस नित्य 2-3 बार बच्चे की गुदा में लगाने से बच्चों के चुनने (पेट के कीड़े) मर जाते हैं।
10. बिच्छू के विष पर : एरंड के पत्तों का रस, शरीर के जिस भाग की ओर दंश न हुआ हो, उस ओर के कान में डालें और बहुत देर तक कान को ज्यों का त्यों रहने दें। इस प्रकार दो-तीन बार डालने से बिच्छू का विष उतर जाता है।
11. नींद कम आना : एरंड के अंकुर बारीक पीसकर उसमें थोड़ा सा दूध मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को कपाल (सिर) तथा कान के पास लेप करने से नींद का कम आना दूर हो जाता है।
12. पीनस रोग– एरण्ड के तेल को तपाकर रख लें और जिस ओर नाक में पीनस हो गया हो उस ओर के नथुने से एरण्ड के तेल को दिन में कई बार सूंघने से पीनस नष्ट हो जाती है।
- एरंड की जड़ और सोंठ को घिसकर योनि पर लेप करें। इससे योनि दर्द ठीक हो जाता है।
- एरंड तेल में रूई का फोहा भिगोकर योनि में धारण करने से योनि का दर्द मिट जाता है।
13. पीठ के दर्द में : एरंड के तेल को गाय के पेशाब में मिलाकर देना चाहिए। इससे पीठ, कमर, कन्धे, पेट और पैरों का शूल (दर्द) नष्ट हो जाता है।
14. बच्चों के दस्त : एरंड और चूहे की लेण्डी का चूर्ण नींबू के रस में मिलाकर बच्चों की नाभि और गुदा पर लेप करना चाहिए। इससे बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है।
15. पिसा हुआ कांच खा लेने पर : पिसा हुआ कांच खा लेने पर 30 ग्राम एरंड का तेल पिलाने से लाभ मिलता है।
16. माथे (मस्तक) के दर्द में : एरंड की जड़ को भांगरे के रस में घिसकर नाक में लगाकर सूंघे, इससे छींक आकर मस्तक शूल नष्ट हो जाता है।
17. होंठों का फटना : होंठों के फटने पर रात्रि को एरंड तेल होठ पर लगाने से लाभ मिलता है।
18. हृदय रोग : एरंड की जड़ का काढ़ा जवाखार के साथ देने से हृदय रोग और कमर के दर्द का नाश हो जाता है।
19. स्तनों की सूजन (स्त्रियों के स्तन में दूध के कारण आयी हुई सूजन और दर्द) : स्तनों के सूजन से पीड़ित महिला के स्तनों में एरंड के पत्तों की पुल्टिस बांधनी चाहिए। इससे स्तनों की सूजन और दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है।