परिचय :
बकायन का पेड़ (bakayan tree) बहुत बड़ा होता है। इसके पत्ते कड़वे नीम के समान तथा आकार में कुछ बड़े होते हैं। बकाइन (bakayan) की लकड़ी इमारती कामों के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह छायादार पेड़ (tree) होता है। इसके फल भी कड़वे नीम के फल के समान होते हैं। इसकी छाया शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है। इसीलिए इसे रास्तों के दांयी-बांयी ओर अधिकतर लगाया जाता है। अरब देशों में इसके पेड़ अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसे कड़वा नीम भी कहा जाता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत – महानिम्ब
हिन्दी – बकाइन, बकायन
गुजराती – बकामलीमड़ी
मराठी – बकाणलींब
बंगला – घोड़ा नीम, महानिम
कन्नड़ – महाबेवु, अरबेधु
तेलगू – तुरकवेपा, पेदावेपा
तमिल – मलाइवेंबु
फारसी – अजाद दरख्त
अरबी – हर्बीत, बान
पंजाबी – धरेक
लैटिन – नेलिया एजेडेरक
रंग :बकायन का फल काले रंग का होता है।
स्वाद : इसके फल का स्वाद कड़वा होता है।
स्वरूप : बकायन का फल बहुत ही प्रसिद्ध है।
स्वभाव : इसके फल की तासीर गर्म होती है।
हानिकारक : बकाइन का अधिक मात्रा में सेवन दिल और आमाशय के लिए हानिकारक हो सकता है।
नोट : इसके पेड़ के किसी भी अंग का उपयोग उचित मात्रा में तथा सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि यह कुछ विषैला होता है। फलों की अपेक्षा इसके छाल और फूल कम विषैले, इसके बीज सबसे अधिक विषैले और ताजे पत्ते हानि रहित होते हैं।
दोषों को दूर करने वाला : सौंफ, बकायन के फल के दोषों को दूर करता है।
तुलना : बकायन के फलों की तुलना मजीठ से की जा सकती है।
मात्रा : इसे 6 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन किया जाता है।
गुण :
बकायन के फल गांठों को तोड़कर बाहर निकाल देता है। यह सूजनों को पचा देता है। खून को साफ करता है। बरवट (प्लीहा का बढ़ना) के दर्द को रोकता है। यह बवासीर के लिए लाभकारी होता है तथा यह सूखी या गीली खुजली को मिटाता है। इसका तेल पुट्ठों की ऐंठन और दर्द के लिए लाभकारी रहता है। इसका फल शीतल, कषैला, तीखा और कड़वा होता है तथा यह जलन, कफ, बुखार, गर्मी, पेट के कीडे़, हृदय की पीड़ा, उल्टी, प्रमेह, हैजा, गैस, शीतपित्त, गले के रोग, सांस सम्बन्धी बीमारी, चूहे के विष और सभी प्रकार के सफेद दागों को दूर करता है।
यह रोम कूपों को साफ करता है, पित्त और कफ को दस्तों के द्वारा बाहर निकालता है, बवासीर और बरबट को लाभ पहुंचाता है, हृदय की सख्ती के लिए लाभकारी होती है। यह सूखी और गीली खुजली को मिटाता है। बकाइन चूहों के विषों को दूर करता है। बकाइन का लेप सूजनों को पचाता है। इसकी छाल का मंजन दांतों को सुन्दर व मजबूत बनाता है।
बकाइन के विभिन्न उपयोग :
1. कुत्ते के काटने के जहर पर : बकाइन के जड़ का रस निकालकर पीने से कुत्ते के काटने पर उसका जहर नहीं फैलता है।
2. गठिया (जोड़ों का दर्द) :
- 10 ग्राम बकायन की जड़ की छाल को सुबह-शाम पानी में पीसकर या छानकर पीने से 1 महीने में भयानक गठिया का रोग भी मिट जाता है।
- बकायन की जड़ या आंतरिक छाल का 3 ग्राम चूर्ण पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से गठिया के रोग में लाभ मिलता है।
- बकायन के बीजों को सरसों के साथ पीसकर लेप करने से गठिया से छुटकारा मिल जाता है।
3. पित्त के कारण से आंखों में दर्द होने पर :
- बकाइन के फलों को पीसकर उसकी लुगदी बना लेते हैं इस लुगदी को आंखों पर बांधने से आराम मिलता है।
- बकायन के फलों को पीसकर छोटी सी टिकिया बनाकर आंखों पर बांधते रहने से पित्त के कारण होने वाला आंखों का दर्द समाप्त हो जाता है। अधिक गर्मी के कारण आंखों का दर्द भी दूर हो जाता है।
- आंखों से कम दिखाई देना, मोतियाबिंद पर बकाइन के एक किलोग्राम हरे ताजे पत्तों को पानी से धोकर अच्छी प्रकार से साफ करके पीसकर तथा निचोड़कर रस निकाल लेते हैं। इस रस को पत्थर के खरल में खूब घोंटकर सूखा लेते हैं। दुबारा 1-2 खरल करते हैं तथा खरल करते समय भीमसेनी कपूर 3 ग्राम तक मिला दें। इसको सुबह-शाम आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियांबिंद तथा अन्य प्रकार से उत्पन्न कमजोर दृष्टि आंखों से पानी आना, लालिमा, खुजली, रोहे आदि आंखों के रोग दूर हो जाते हैं।
4. भैंस की सूजन पर : बकाइन अथवा बांस के पत्तों को पीसकर पिलाने से आराम मिलता है।
5. प्रमेह : बकाइन के फलों को चावल के पानी में पीसकर और उसमें घी डालकर प्रमेह के रोगी को पिलाना चाहिए। इससे प्रमेह के रोगियों को जल्द ही आराम मिलता है।
6. मस्तिष्क की गर्मी: बकायन के फूलों का लेप करने से मस्तिष्क की गर्मी मिट जाती है।
7. सिर में दर्द :
- अगर सिर में वातजन्य पीड़ा हो तो बकायन के पत्ते व फूलों को गर्म-गर्म लेप करने से सिरदर्द में लाभ मिलता है।
- गर्मी के कारण होने वाले सिर के दर्द में बकायन के पत्तों को पीसकर माथे पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
8. मुंह के छाले :
- 10-10 ग्राम बकायन की छाल और सफेद कत्था दोनों को बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर लगाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
- 20 ग्राम बकायन की छाल को जलाकर 10 ग्राम सफेद कत्थे के साथ पीसकर मुंह के भीतर लगाने से लाभ होता है।
9. गंडमाला (गले की छोटी-छोटी गिल्टियां):
- बकायन की शुष्क छाल और पत्ते दोनों को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर और पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में पकाकर चौथाई शेष काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाएं तथा इसी का लेप भी करें। इससे गंडमाला और कुष्ठ (कोढ़) के रोग में लाभ होता है।
- गंडमाला पर बकायन के पत्तों को पीसकर लेप करने से लाभ होता है।
10. अर्श (बवासीर) : - बकायन के सूखे बीजों को पीसकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से खूनी-वादी दोनों प्रकार की बवासीर में लाभ मिलता है।
- बकायन के बीजों की गिरी और सौंफ दोनों को बराबर मात्रा में पीसकर मिश्री मिलाकर दो ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से बवासीर के रोग में लाभ मिलता है।
- बकायन के बीजों की गिरी में समान भाग एलुआ व हरड़ मिलाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को कुकरौंधे के रस के साथ घोटकर 250-250 मिलीग्राम की गोलियां बनाकर सुबह-शाम 2-2 गोली पानी के साथ लेने से बवासीर में खून आना बंद हो जाता है तथा इससे कब्ज दूर हो जाती है।
11. पेट का दर्द : पेट के दर्द में बकायन के पत्तों की 3 से 5 ग्राम की मात्रा के काढ़े में 2 ग्राम शुंठी चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से पेट के दर्द में लाभ मिलता है।