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बेलपत्र (Bael) के लाभ

बेलपत्र

बेल का पेड़ बहुत प्राचीन है। इस पेड़ में पुराने पीले लगे हुए फल दुबारा हरे हो जाते हैं तथा इसको तोड़कर सुरक्षित रखे हुए पत्तों को 6 महीने तक ज्यों के त्यों बने रहते हैं और गुणहीन नहीं होते। इस पेड़ की छाया शीतल और आरोग्य कारक होती हैं। इसलिए इसे पवित्र माना जाता है।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिंदी – बेल, विली, श्रीफल
संस्कृत – बिल्य, पूतिवात, शैलपत्र, लक्ष्मीपुत्र, शिवेष्ट
गुजराती – बेल, बीली
मराठी – बेल
बंगाली – बेल
तैलगु – बिल्वयु, मोरेडु
अरबी – सफरजले
उर्दू – बेल
तमिल – बिलूबम
वैज्ञानिक नाम – (ऐगल मारमेलॉस (1)
कोरिया- कुलनाम रूटेसी
अंग्रेजी – बेल फ्रूट बेल

बेलपत्र स्वरूप :

बेल का पेड़ 25-30 फुट ऊंचा, 3-4 फुट मोटा, पत्ते जुड़े हुए, त्रिफाक और गन्धयुक्त होता है। फल 2-4 इंच व्यास का गोलाकार धूसर और पीले रंग का होता है। इसके बीज छोटे कड़े तथा अनेक होते हैं।

बेलपत्र स्वभाव :

बेल की तासीर गर्म होती हैं। बेल के अंदर टैनिक एसिड़, एक उड़नशील तेल, एक कड़वा तत्व और एक चिकना लुआबदार पदार्थ पाया जाता हैं। बेल की जड़, तत्त्वों और छाल में चीनी को कम करने वाले तत्व और टैनिन पाये जाते हैं। बेल के फल के गूदे में मांरशेलीनिस तथा बीजों में पीले रंग का तेल होता है जोकि बहुत ही उत्तम विरेचन (पेट साफ करने वाला) का कार्य करता है।

गुण-धर्म :

बेल कफ वात को शांत करने वाला, रुचिकारक, दीपन (उत्तेजक), पाचन, दिल, रक्त (खून को गाढ़ा करना), बलगम को समाप्त करने वाला, मूत्र (पेशाब) और शर्करा को कम करने वाला, कटुपौष्टिक तथा अतिसार (दस्त), रक्त अतिसार (खूनी दस्त), प्रवाहिका (पेचिश), मधुमेह (डायबिटीज), श्वेतप्रदर, अतिरज:स्राव (मासिक-धर्म में खून अधिक आना), रक्तार्श (खूनी बवासीर) को नष्ट करता है। बेल का फल-लघु (छोटा), तीखा, कषैला, उत्तेजक, पाचन, स्निग्ध (चिकना), गर्म तथा शूल (दर्द), आमवात (गठिया), संग्रहणी (पेचिश), कफातिसार, वात, कफनाशक होता है तथा यह आंतों को ताकत देती है।

अर्धपक्व फल (आधा पका फल)-

यह लघु (छोटा), कडुवा, कषैला, गर्म (उष्ण), स्निग्ध (चिकना), संकोचक, पाचन, हृदय और कफवात को नष्ट करता है। बेल की मज्जा और बीज के तेल अधिक गर्म और तेज वात को समाप्त करते हैं। बेल के पके फल भारी, कड़ुवा, तीखा रस युक्त मधुर (मीठा) होता है। यह गर्म दाहकारक (जलन पैदा करने वाला), मृदुरेचक (पेट साफ करने वाला) वातनुलोमक, वायु को उत्पन्न करने वाला और हृदय को ताकत देता है।

पत्र (पत्ता) :

बेल का पत्ता संकोचक, पाचक, त्रिदोष (वात, पित और कफ) विकार को नष्ट करने वाला, कफ नि:सारक, व्रणशोथहर (घाव की सूजन को दूर करने वाला), शोथ (सूजन) को कम करने वाला, स्थावर (विष) तथा मधुमेह (डायबिटीज), जलोदर (पेट में पानी का भरना), कामला (पीलिया), ज्वर (बुखार) आंखों से तिरछा दिखाई देना आदि में लाभ पहुंचाता है।

जड़ और छाल :

जड़ और छाल लघु, मीठा, वमन (उल्टी), शूल (दर्द), त्रिदोष (वात, पित्त और कफ), नाड़ी तंतुओं के लिये शामक, कुछ नशा पैदा करने वाली, बुखार, अग्निमांघ (भूख को बढ़ाने वाला), अतिसार (दस्त) ग्रहणी (पेचिश), , मूत्रकृच्छ् (पेशाब करने में कष्ट होना), हृदय की कमजोरी आदि में प्रयोग होता है।

विभिन्न रोगों में सहायक :

1. सिर में दर्द :

2. बालों या सिर में जूं :

बेल के पके हुए फल के आधे कटोरी जैसे छिलके को साफकर उसमें तिल का तेल और कपूर मिलाकर दूसरे भाग से ढककर रखने से तेल को सिर में लगाने से सिर में जूं नहीं रहती हैं।

3. आंखों का मोतियाबिंद :

बेल के पत्तों पर घी लगाकर तथा सेंककर आंखों पर बांधने से, पत्तों का रस आंखों में टपकाने से, साथ ही पत्तों को पीसकर मिश्रण बनाकर उसका लेप पलकों पर करने से आंखों के कई रोग मिट जाते हैं।

4. रतौंधी :

5. बहरापन :

6. क्षय (टी.बी) :

4-4 भाग बेल की जड़, अडूसा तथा नागफनी थूहर के के सूखे हुए फल और 1-1 भाग सोंठ, कालीमिर्च व पिप्पली लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में पकाकर चौथाई हिस्सा बचने पर सुबह और शाम शहद के साथ रोगी को सेवन कराने से क्षय (टी.बी), श्वास (दमा), वमन (उल्टी) आदि रोगों में जल्दी लाभ मिलता है।

7. दिल का दर्द :

1 ग्राम बेल के पत्तों के रस में 5 ग्राम गाय का घी मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से दिल के दर्द में जल्दी आराम मिलता है।

8. पेट का दर्द :

9. जलन (दाह), तृष्णा (प्यास), अजीर्ण (भूख का कम होना), अम्लपित्त्त (डायबिटीज) होने पर :

10. भूख का कम लगना :

11. संग्रहणी (दस्त, पेचिश) :

12. प्रवाहिका (पेचिश, संग्रहणी) :

13. बाल रोग :

5 से 10 मिलीलीटर कच्चे फलों की मज्जा तथा आंवले की गुठली के काढ़े को दिन में 3 बार सेवन करने से बालरोगों में लाभ मिलता है।

14. आमातिसार :

15. खूनी दस्त :

16. अतिसार (दस्त) :

17. पित्त अतिसार :

बेल का मुरब्बा खिलाने से पित्त का अतिसार मिट जाता हैं। पेट के सभी रोगों में बेल का मुरब्बा खाने से लाभ मिलता है।

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