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आयुर्वेदिक अर्क भाग 2

आयुर्वेदिक अर्क भाग 2

 *!! गिलोय अर्क !!*

*गुण व उपयोग : -* इसके सेवन से आमवात, वातरक्त, प्रमेह, रक्तपित्त, जीर्णज्वर, पित्तज्वर, रक्त की गर्मी के विकार, मधुमेह आदि रोगों में उत्तम लाभ मिलता है ! मधुमेह के रोगियों को पानी पीने के दौरान २० ग्राम गिलोय अर्क को मिलाकर सेवन करने से कुछ समय में पेशाब में चीनी की मात्रा कम हो जाती है !!

*मात्रा व अनुपान : -*
   २० से ४० ग्राम, दिन में दो बार पानी के साथ !!

       *!! अजवायन अर्क !!*

*गुण व उपयोग : -* यह मन्दाग्नि, उदरशूल, अजीर्ण, गुल्म, आमदोश, अरूचि, वायु व कफ विकार आदि में उत्तम लाभ प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से ५० ग्राम, दिन में २-३  बार !!

       *!! गोखमुण्डी अर्क !!*

*गुण व उपयोग : -* यह फोड़े-फुंसी, खाज-खुजली, दाद, चकत्ते निकलना, विसर्प, कुष्ठ आदि में लाभकारी है ! चेहरे के काले दाद, झार्इ आदि में इसका सेवन किया जाता है ! यह खून साफ करता है ! सप्त धातुओं में प्रविष्ट हुए विष को नष्ट करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २० से ५० ग्राम, दिन-रात में चार बार अकेले या बराबर मात्रा में पानी मिलाकर पिलाएं !!

        *!! चन्दन अर्क !!*

*गुण व उपयोग : -* यह कुछ अधिक शीतवीर्य है ! इसके सेवन से पेशाब में जलन हो, पेशाब रूक-रूक कष्ट के साथ आता हो, पेशाब के साथ रक्त आता हो या नाक से खून आता हो तो इस अर्क में ५ ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से पेशाब बिना किसी दर्द से साफ हाने लगता है ! तथा रक्त का आना भी बन्द हो जाता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २० से ४० ग्राम, दिन में दो बार !!

            *!! ब्राह्मी अर्क !!*

*गुण व उपयोग : -* इसके सेवन से याददाशत, कमजोरी, अपस्मार, उन्माद, मूच्र्छा, हिस्टीरिया, स्मरणशक्ति की कमी, दिमाग में थकावट या खुश्की रहना, नींद कम आना, मानसिक अशान्ति व भ्रम बना रहना, चक्कर आना आदि में विशेष लाभ मिलता है ! याददाश्त बढ़ाने में यह गुणकारी है ! आँखों के आगे अंधेरा-सा मालूम पड़ना या चक्कत आदि रोगों में इस अर्क को दूध के साथ मिलाकर या अन्य औषधीयों के साथ अनुपान रूप में लेने से शीघ्र एवं उत्तम लाभ होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २० से ४० ग्राम, दिन-रात में दो से चार बार या औषधीयों के अनुपान रूप में प्रयोग करें !!

       *!! पुनर्नवा अर्क !!*

*गुण व उपयोग : -* इसके सेवन से कामला, पांडु, हलीमक, उदर रोग, मूत्र कृच्छ, प्रमेह, शोथ, रक्तपित्त, वृक्क विकार, यकृत शोथ, गर्भाशय शोथ आदि रोगों में विशेष लाभमिलता है ! गर्भाशय शोथ में इसके साथ बराबर मात्रा में दशमूल अर्क मिलाकर देने से उत्तम लाभ होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २० से ५० ग्राम, दिन में दो से तीन बार !!

        *!! त्रिफला अर्क !!*

*गुण व उपयोग : -* इसके सेवन से प्रमेह, कामला, पेट फूला हुआ रहना, मधुमेह, स्वप्नदोष, आमवात, मेदावृद्धि, शरीर से पसीना निकलना तथा पसीने से दुगन्ध आना, पांडुरोग, वातरोग, वातरक्त, खाज-खुजली, पामा, कुष्ठ, कब्ज आदि रोगों में विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २० से ८० ग्राम, दिन-रात में ३ से ४ बार आवश्यकतानुसार दें !!

             *!! दशामूल अर्क !!*

*गुण व उपयोग : -* इसके सेवन से प्रसूत विकारों, हृदय रोग, दिमागी कमजोरी, शोथ रोग, गुल्म, उदर रोग, मानसिक अशान्ति, अनिद्रा, हृदय की कमजोरी आदि में उत्तम लाभ मिलता है ! किन्ही कारणों से हृदय में लगने वाले झटकों में व मंद-मंद दर्द में यह विशेष लाभकारी है ! ऐसी स्थिती में अर्जुन की छाल के चूर्ण के साथ इसका सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० ग्राम से १०० ग्राम, दिन में चार बार अकेले ही या वातनाशक औषधीयों के अनुसार रूप में दें !!

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