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बरगद पेड़ (Banyan Tree) के लाभ और हानि

परिचय:

भारत (India) में बरगद के पेड़ (Banyan Tree) को पवित्र माना जाता है। इसे पर्व या त्यौहार पर पूजा जाता है। इसका पेड़ बहुत ही बड़ा व विशाल होता है। बरगद (Banyan Tree) की शाखाओं से जटाएं लटककर जमीन तक पहुंचती हैं और तने का रूप ले लेती हैं जैसे-जैसे पेड़ पुराना होता जाता है, वैसे-वैसे इसका घेरा बढ़ता ही जाता है। यह भारत में हर जगहों पर मन्दिरों व कुओं के आस-पास पाया जाता है। इसके पत्ते कड़े, मोटे, अंडाकार, निचला भाग खुरदरा, ऊपरी भाग चिकनापन लिए होता है। इन्हें तोड़ने पर दूध निकलता है। बरगद के पेड़ में फूल जाती हुई ठंड में और फल बारिश के महीनों में लगते हैं। फरवरी-मार्च के महीनों में बरगद की पत्तियां गिर जाती है और बाद में नए पत्ते निकलते हैं।पकने पर फलों का रंग लाल हो जाता है। पेड़ की शाखाओं से जटायें लटकने के कारण इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।

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विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिन्दी बड़, बरगद
अंग्रेजी बनयान ट्री
संस्कृत वट, रक्तफल, स्कन्धज
मराठी बड़
गुजराती बड़ली
बंगाली बड़ गाछ
लैटिन फाइकस इण्डिकस

हानिकारक : यह गर्म स्वभाव वालों को नुकसान पहुंचा सकता है।

दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए कतीरा का उपयोग किया जाता है।
तुलना : बरगद की तुलना दम्भुज अखवैन से की जा सकती है।

मात्रा : इसे 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए।

गुण :
बरगद का पेड़ कषैला, शीतल, मधुर, पाचन शक्तिवर्धक, भारी, पित्त, कफ (बलगम), व्रणों (जख्मों), धातु (वीर्य) विकार, जलन, योनि विकार, ज्वर (बुखार), वमन (उल्टी), विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल) तथा दुर्बलता को खत्म करता है। यह दांत के दर्द, स्तन की शिथिलता (स्तनों का ढीलापन), रक्तप्रदर, श्वेत प्रदर (स्त्रियों का रोग), स्वप्नदोष, कमर दर्द, जोड़ों का दर्द, बहुमूत्र (बार-बार पेशाब का आना), अतिसार (दस्त), बेहोशी, योनि दोष, गलित कुष्ठ (कोढ़), घाव, बिवाई (एड़ियों का फटना), सूजन, वीर्य का पतलापन, बवासीर, पेशाब में खून आना आदि रोगों में गुणकारी है।

विभिन्न रोगों में सहायक :

1. चोट लगने पर : बरगद का दूध चोट, मोच और सूजन पर दिन में 2-3 बार लगाने और मालिश करने से फायदा होता है।
2. पैरों की बिवाई : बिवाई की फटी हुई दरारों पर बरगद का दूध भरकर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में वह ठीक हो जाती है।
3. बच्चों के हरे पीले दस्त में : नाभि में बरगद़ का दूध लगाने और एक बताशे में 2-3 बूंद डालकर दिन में 2-3 बार रोगी को खिलाने से सभी प्रकार के दस्तों में लाभ होता है।

4. कमर दर्द :

  • कमर दर्द में बरगद़ के दूध की मालिश दिन में 3 बार कुछ दिन करने से कमर दर्द में आराम आता है।
  • बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से कमर दर्द से छुटकरा मिलता है।
  • कमर दर्द में बरगद के पेड़ का दूध लगाने से लाभ होता है।

5. शीघ्रपतन : सूर्योदय से पहले बरगद़ के पत्ते तोड़कर टपकने वाले दूध को एक बताशे में 3-4 बूंद टपकाकर खा लें। एक बार में ऐसा प्रयोग 2-3 बताशे खाकर पूरा करें। हर हफ्ते 2-2 बूंद की मात्रा बढ़ाते हुए 5-6 हफ्ते तक यह प्रयोग जारी रखें। इसके नियमित सेवन से शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, स्वप्नदोष, प्रमेह, खूनी बवासीर, रक्त प्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं और यह प्रयोग बलवीर्य वृद्धि के लिए भी बहुत लाभकारी है।
6. स्तनों का ढीलापन:

  • बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर बने लेप को रोजाना सोते समय स्तनों पर मालिश करके लगाते रहने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।
  • बरगद की जटा के बारीक अग्रभाग के पीले व लाल तन्तुओं को पीसकर लेप करने से स्तनों के ढीलेपन में फायदा होता है।

7. यौनशक्ति और स्तम्भ बढ़ाने हेतु : बरगद के पके फल को छाया में सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बराबर मात्रा की मिश्री के साथ मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दूध से नियमित रूप से सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में यौन शक्ति में बहुत लाभ मिलता है।
8. नपुंसकता :

  • बताशे में बरगद के दूध की 5-10 बूंदे डालकर रोजाना सुबह-शाम खाने से नपुंसकता दूर होती है।
  • 3-3 ग्राम बरगद के पेड़ की कोंपले (मुलायम पत्तियां) और गूलर के पेड़ की छाल और 6 ग्राम मिश्री को पीसकर लुगदी सी बना लें फिर इसे तीन बार मुंह में रखकर चबा लें और ऊपर से 250 ग्राम दूध पी लें। 40 दिन तक खाने से वीर्य बढ़ता है और संभोग से खत्म हुई शक्ति लौट आती है।

9. पेशाब की जलन : बरगद के पत्तों से बना काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 2-3 बार सेवन करने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है। यह काढ़ा सिर के भारीपन, नजला, जुकाम आदि में भी फायदा करता है।
10. आग से जल जाना :

  • दही के साथ बड़ को पीसकर बने लेप को जले हुए अंग पर लगाने से जलन दूर होती है।
  • जले हुए स्थान पर बरगद की कोपल या कोमल पत्तों को गाय के दही में पीसकर लगाने से जलन कम हो जाती है।
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